हर जगह जाहिर है हर जगह हाज़िर है,
खुदा हर इल्म का माहिर है
रख के जेब में दुनिया घूमता है,
वक़्त एक मनचला मुसाफिर है
Thursday, July 29, 2010
Saturday, January 23, 2010
मौसम के अलबेले दिन
कभी मद्धम चमकीले दिन
शबनम कभी शोले दिन
गर्मी की शरबत में घुल के
मानो खुद को भूले दिन
बारिश में बिस्तर पर लेटे
कुछ सूखे कुछ गीले दिन
सर्द हवा में अलाव सेंकते
सर्दी के अलबेले दिन
नई शाख पर जा कर अटके
बसंत के नर्म रुपहले दिन
मुझको कितने अपने लगते
मौसम के मुह्बोले दिन
अजीत
शबनम कभी शोले दिन
गर्मी की शरबत में घुल के
मानो खुद को भूले दिन
बारिश में बिस्तर पर लेटे
कुछ सूखे कुछ गीले दिन
सर्द हवा में अलाव सेंकते
सर्दी के अलबेले दिन
नई शाख पर जा कर अटके
बसंत के नर्म रुपहले दिन
मुझको कितने अपने लगते
मौसम के मुह्बोले दिन
अजीत
Saturday, January 16, 2010
धुंध में लिपटा शहर
सूरज पिछले कई दिनों से है छुट्टी पर
गैर हाजिरी लगने के डर से बेखबर
गीले कपड़े अभी तक गीले हैं
पेड़ भी हवा ने बेदर्दी से छीले हैं
सड़कें दिनभर खाली खाली सी रहती हैं
गाड़ियां दौड़ती नहीं अब रेंगती हैं
ख्यालों में सबके धूप है, सबको धूप का ख़याल है
कई दिनों से धुंध में लिपटे शहर का ये हाल है
धुंध में लिपटे अमृतसर को देखकर ये ख्याल आया
गैर हाजिरी लगने के डर से बेखबर
गीले कपड़े अभी तक गीले हैं
पेड़ भी हवा ने बेदर्दी से छीले हैं
सड़कें दिनभर खाली खाली सी रहती हैं
गाड़ियां दौड़ती नहीं अब रेंगती हैं
ख्यालों में सबके धूप है, सबको धूप का ख़याल है
कई दिनों से धुंध में लिपटे शहर का ये हाल है
धुंध में लिपटे अमृतसर को देखकर ये ख्याल आया
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