उस शब्नमी शाम के साए तले
रसोई में तेरे साथ बैठ कर
तेरे हाथों से बनी चाय पी थी
चाय में चीनी ठीक थी फिर भी
मैंने जानबूझ कर तेरी इक उंगली कप में डुबोई थी
आज भी जब चाय पीता हू तो
वो शाम याद आती है
मैं तुम्हे सोचता रहता हू और
चाय ठंडी हो जाती है
अजीत धनखर
Saturday, November 21, 2009
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