Tuesday, July 21, 2009

हसरते-परवाज़

ग़ज़ल से जब लहू टपक जाएगा ,
मौसमे-फुरकत तब ओर महक दे जाएगा
तलब थी जख्मों को मरहम की मगर,
किसे ख़बर थी वो नमक दे जाएगा
हसरते-परवाज़ रखो अपने दिल में,
कभी कोई परिंदा फलक दे जाएगा
यू शोकिया गम को गले ना लगा ,
उम्रभर के लिए कसक दे जायेगा
-अजीत

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