घटाओ की चुनरी उड़ चली आसमा के सर से
और लहरा गई ज़मी पे जुनू की तरह
बूंदों ने चूम लिए प्यासी ज़मीन के लब
बावरी हवा की सरगोशी से पगला गए पेड
लाख शिकवा करे कोई क्योँ देर से बरसे बदरा
मौसम की मरजी है, जब चाहे जैसे लिबास पहने
अजीत
Thursday, September 3, 2009
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